Sunday, October 9, 2016

रावण ने अमरता पाने के लिए की थी इस शिवलिंग की स्थापना, इस वटवृक्ष के नीचे दिया गया था गीता का ज्ञान

               केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                    PART-12 पावंटा साहिब से कुरुक्षेत्र तक का सफर

9 अक्टूबर, भोपाल। भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। 5 जून को शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग करने के बाद नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए 198 किमी बाइक चलाकर देहरादून पहुंचा। 6 जून का देहरादून से चला। दोपहर में पावंटा साहिब पहुंचा। अब आगे..




6 जून 2016, पांवटा साहिब से दोपहर 12 बजे आगे चल दिया। यहां से अगली मंजिल नाहन होते हुए चंडीगढ़ थी। चलते-चलते धूप बहुत तेज लगने लगी। गर्मी का मौसम चल रहा था। तभी 1 बजे रास्ते में एक ढाबा मिला तो वहीं रुक गया। वहां पर आर्मी की टोली खाना खा रही थी इसलिए बहुत देर बाद खाने का नंबर आया। ढाबा इतनी अच्छी तरह सजा हुआ था कि आर्मी वाले भी वहां अपने फोटो खिंचवा रहे थे। यहां का खाना थोड़ा महंगा था लेकिन भरी गर्मी में 1 घंटे काटने के हिसाब से ठीक था। 






2 बजे यहां से निकला। थोड़ा आगे जाने पर ही नाहन जाने का रास्ता आया। चूंकि मुझे चंडीगढ़ जाना था इसलिए वहां नहीं गया।



अभी 15 मिनट चला ही था कि रोड के साइड में एक बोर्ड दिखा। उसपर लिखा था पौड़ीवाला, स्वर्ग की दूसरी सीढ़ी। इस जगह के बारे में कभी सुना नहीं था। जब बोर्ड को पढ़ा तो फिर जाने की जिज्ञासा हुई। रास्ता बिल्कुल खाई में जाने जैसा था। हर तरफ सन्नाटा। 


इस शिवलिंग का इतिहास लंकापति रावण से जुड़ा हुआ है। रावण ने अमरता प्राप्त करने के लिए शिव शंकर की घोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर रावण को वरदान मिला कि वह एक दिन में पांच पौड़ियां बना देगा तो उसे अमरता मिल जाएगी। रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में, दूसरी पौड़ी यहां शिवमंदिर में, तीसरी चूढ़ेश्वर महादेव में, चौथी किंकर कैलाश में  बनाई। उसके बाद उसे नींद आ गई। जब वह जागा तो सुबह हो चुकी थी। मान्यता है इस शिवलिंग में साक्षात शिव का वास है। 





ढाई बजे यहां से चला और पौने 4 बजे हरियाणा के पंचकूला पहुंच गया। पंचकूला से आगे चला तो ऐसा लगा कि जैसे में चंबल के बीहड़ों में चल रहा हूं। वैसे ही मिट्टी के टीले चारों तरफ दिखे जैसे चंबल में हैं।







4 बजे चंडीगढ़ पहुंच गया। चौड़ी-चाैड़ी सड़कें और साफ-सुथरा चंडीगढ़ वैसा ही निकला जिसके बारे में हमेशा सुना करता था। रास्ता पूछते-पूछते शाम साढ़े 4 बजे यहां की फेमस सुखना लेक तक पहुंच गया जो मानवनिर्मित एक बड़ी झील है। 









चंडीगढ़ वालों के लिए ये आउटिंग की बेहतरीन जगह है। शाम के समय फैमिली वाले आने शुरू हो गई थे। कोई बोटिंग कर रहा था तो कोई गेम्स में मशगूल हो गए। 



यहां सिर्फ 15 मिनट ही रुका और फिर पास में ही रॉक गार्डन पहुंचा। यहां ज्यादा समय लगना था। 




रॉक गार्डन चंडीगढ़ के सेक्टर एक में मौजूद रॉक गार्डन एक व्यक्ति के एकल प्रयास का अनुपम और उत्कृष्ट नमूना है, जो दुनिया भर में अपने अनूठे उपक्रम के लिए बहुत सराहा गया है। रॉक गार्डन के निर्माता नेकचंद एक कर्मचारी थे जो दिन भर साइकिल पर बेकार पड़ी ट्यूब लाइट्स, टूटी-फूटी चूडियों, प्लेट, चीनी के कप, फ्लश की सीट, बोतल के ढक्कन व किसी भी बेकार फेंकी गई वस्तुओं को बीनते रहते और उन्हें यहाँ सेक्टर एक में इकट्ठा करते रहते। धीरे-धीरे फुर्सत के क्षणों में लोगों द्वारा फेंकी गई फ़ालतू चीज़ों से ही उन्होंने ऐसी उत्कृष्ट आकृतियों का निर्माण किया कि देखने वाले दंग रह गए। नेकचंद के रॉक गार्डन की कीर्ति अब देश-विदेश के कलाप्रेमियों के दिलों में घर कर चुकी है।














वाकई में रॉक गार्डन अद्भुत जगह है। बहुत ही मेहनत से यह बनाया गया है। हर गैलरी में आपको चौंकाने वाली चीजें मिलती हैं। आर्टिफिशियल झरना, चूड़ी से बनी प्रतिमाएं मन मोह लेती हैं।


शाम को 6 बजे चंडीगढ़ से निकला। यह हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी है और केंद्रशासित प्रदेश भी। शहर में घूमते-घूमते कब पंजाब आ गया और कब हरियाणा पता ही नहीं चलता। 



पंजाब के डेरा बस्सी, लालडू होते हुए शाम 7 बजे हरियाणा के अंबाला पहुंच गया। यहां पर रुकना नहीं था। अब अगली मंजिल कुरुक्षेत्र थी। 





कुरुक्षेत्र में रुकने के लिए अपने मित्र मनोज कौशिक को फोन लगाया। वह डीबी डिजीटल में हरियाणा को देखते हैं और पानीपत में रहते हैं। उन्होंने कहा कि तुम कुरुक्षेत्र पहुंचों, वहां व्यवस्था हो जाएगी। 




8 बजे कुरुक्षेत्र के एंट्री गेट पर था जहां श्रीकृष्ण अर्जुन की प्रतिमा लगी थी। यहां से कुरुक्षेत्र शहर 10 किमी दूर था और ज्योतिसर 25 किमी। मैं यहां के लाइट एंड साउंड शो को देखना चाहता था इसलिए स्पीड से गाड़ी चलाते हुए शहर को पार करते हुए ज्योतिसर पहुंचा। लेकिन सारी कवायद बेकार गई। आज लाइट एंड साउंड शो की छुट्टी थी। बहुत अफसोस हुआ। उस इतिहास को जीवंत देखने का मौका निकल गया जब श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हैं। 


फिर भी मंदिर के अंदर गया और उस वटवृक्ष को देखा जिसके नीचे 5000 साल पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान दिया। यह वटवृक्ष उस समय का साक्षी है। ऐसे 2 वटवृक्ष और हैं जो मंदिर के अंदर घुसते ही लगे हैं। 


वहां जो बोर्ड लगा है उसके अनुसार ज्योतिसर का अर्थ है ज्ञान का सरोवर। आज से लगभग 5151 वर्ष पहले भगवानी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी अक्षय वट के नीचे गीता उपदेश और अपने विराट रुप के दर्शन दिए थे। यहीं से महाभारत का युद्ध प्रारंभ होकर 48 कोस यानि की 156 किमी के क्षेत्र महाभारत का युद्ध लड़ा गया। ये युद्ध 18 दिन तक चला था। 





मैं मंदिर के अंदर ही था कि आंधी तूफान शुरू हो गया। बारिश भी होने लगी। अब फिर असमंजस में आ गया। अभी रुकने की कहीं व्यवस्था नहीं हुई थी। यदि बारिश देर तक चलती तो यहां से वापसी भी मुश्किल थी। वहीं पर मैं एक घर में गया जिसे धर्मशाला का रुप दिया गया था। उन्होंने कुछ नहीं पूछा और कहा कि खाट पड़ी है, उसपर सो जाओ। अब मैं निश्चिंत था कि कम से कम रात का ठिकाना तो है। फिर मैंने मनोज को फोन लगाया तो उन्होंने कुरुक्षेत्र के एक गुरुद्वारे में रुकने की व्यवस्था कर दी। 



आधा घंटे बाद बारिश थमी तो फिर कुरुक्षेत्र के लिए वापस चला। साढ़े 9 बजे अपने ठिकाने पर पहुंच गया। वहां पर एसी रुम की व्यवस्था करवा दी वह भी निशुल्क। थैंक्स मनोज कौशिक। 



इस तरह 6 जून को देहरादून से कुरुक्षेत्र तक बाइक से 364 किमी की यात्रा हुई। इस रास्ते में कई नई जगह देखी। 

आगे की यात्रा में होगा पानीपत, राखीगढ़ी (हड़प्पा कालीन शहर) और भिवानी तक का 283 किमी का सफर...

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