Friday, October 7, 2016

सम्राट अशोक के कालसी शिलालेख में है राजा और प्रजा का रिलेशन, गुरु गोविंद सिंह से जुड़ा हैं पावंटा साहिब

                       केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                   PART-11 देहरादून से कालसी होते हुए पावंटा साहिब तक का सफर

7 अक्टूबर, भोपाल। भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। 5 जून को शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग करने के बाद नीलकंठ महादेव, ऋषिकेश, हरिद्वार होते हुए 198 किमी बाइक चलाकर देहरादून पहुंचा। अब आगे..


कालसी में सम्राट अशोक का महत्वपूर्ण शिलालेख।


6 जून 2016, देहरादून में सुबह 6 बजे नींद खुली। रात को बारिश हुई तो मौसम ठंडा हो गया था। अब यहां से निकलने की तैयारी शुरू की। देहरादून और मसूरी को पहले भी कई बार आकर देख चुका था इसलिए यहां ज्यादा रुकना नहीं था। 


मेरे साथी ओमप्रताप का नटखट भतीजा।


देहरादून में ओमप्रताप के भाई तेजप्रताप और भाभी। यहीं पर रात को मुझे शेल्टर मिला। 

यहां मेरे मेजबान ने सुविधाओं का खासा ख्याल रखा। लगा ही नहीं कि मैं किसी अनजान जगह पर अनजान लोगों के बीच में हूं। वहां से आते समय अपने भाई ओमप्रताप के लिए उन्होंने सत्तू रख दिया। 


देहरादून का बाजार।

सुबह सवा 7 बजे देहरादून से निकला। घंटाघर, एफआरआई होते हुए आगे चला। 8 बजे देहरादून शहर को पार कर लिया। तभी एक अनपेक्षित घटना घट गई। 





देहरादून में घंटाघर।


एफआरआई की इमारत।

हुआ यूं कि एक जगह फौजी लाल झंडा लेकर खड़ा था। वहां कुछ लोग भी खड़े थे। पहले मेरी समझ में नहीं आया कि ये चल क्या रहा है। लेकिन फिर सोचा कि होगा कुछ और आगे बढ़ गया। कुछ मीटर आगे जाकर पता लगा कि बहुत बड़ी गलती हो गई। तेजी से आर्मी के जवान मेरी तरफ दौड़ते हुए आए और गाड़ी की चाबी निकाल ली। फिर मैनें अपने चारों तरफ निगाह घुमा के देखा तो वहां मैं अकेला ही नजर आ रहा था। सारी गाड़ियां दाेनों तरफ रूकी हुई थीं। अब समझ में आया कि यहां ट्रैफिक सिग्नल नहीं बल्कि सैनिक के झंडे से गाड़ियां रुकती हैं। 

देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी, जहां सेना के अफसर तैयार होते हैं। 


उन्होंने पकड़कर पूछा कि कहां से आ रहे हो। जब मैंने कहा कि भोपाल तो वह आश्चर्यचकित हो गए और एक कोने में ले गए। उनमें से एक सागर और दूसरा दमोह का सैनिक था। इस तरह उनसे प्रदेश का ही संबंध निकल आया। अब वह भी मुझसे कहने लगे कि रिटायरमेंट के बाद हम भी इसी तरह घूमने निकलेंगे। उन्होंने धीरे से चाबी देते हुए कहा कि जल्दी से निकल लो। किस्मत वाले हो, किसी और के हत्थे चढ़े होते तो आज का दिन तो तुम्हारा गया था, बाइक भी नहीं मिलती।

यहीं से कालसी जाने के लिए रास्ता अलग होता है।

इस तरह शुक्र मनाते हुए वहां से निकल गया। सुबह 9 बजे कालसी के मोड़ पर पहुंचा। उत्तर भारत में कालसी ही एकमात्र स्थान हैं जहां अशोक के 14 शिलालेख में से एक पाया जाता है। यह यमुना नदी के किनारे बसा है। 

यमुना नदी।


कालसी बाजार।

कालसी में इस जगह पर अशोक का शिलालेख।

9.30 बजे में उस एेतिहासिक जगह पर था जहां 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने एक महत्वपूर्ण शिलालेख खुदवाया था। इस लेख की भाषा प्राकृत और लिपि ब्राहमी है। इस शिलालेख में सम्राट अशोक के आंतरिक प्रशासन के प्रति उनका दृष्टिकोण, प्रजा के साथ नैतिक, आध्यात्मिक और पितृतुल्य संबंध, अहिंसा के लिए प्रतिबद्धता एवं युद्ध के परित्याग को दर्शाया गया है। 

इस जगह के अंदर है शिलालेख।

सम्राट अशोक का शिलालेख।

शिलालेख के बारे में जानकारी देता बोर्ड।


शिलालेख पर लिखी लिपि।

इस शिलालेख पर हाथी बना हुआ है जो मौर्य साम्राज्य में सम्राट अशोक के राज्य का चिह्न था।

6 जून 2016 को कालसी में सम्राट अशोक के शिलालेख के पास।


कालसी में ही एक प्रतिमा रखी हुई है जिसे सम्राट अशोक की एकमात्र प्रतिमा कहा जाता है। इसी का फोटो देश और दुनिया में प्रचलित है। 
इस प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि ये सम्राट अशोक की एकमात्र प्रतिमा है। 

सम्राट अशोक की प्रतिमा।


आधे घंटे तक यहीं रुक कर इस जगह के बारे में समझता रहा। वहां पर जो केयरटेकर था, उससे भी जानकारी ली। 
सम्राट अशोक की प्रतिमा और यहां के बारे में केयरटेकर ने जानकारी दी।


सुबह 10 बजे कालसी से निकला और सवा 10 बजे डाकपत्थर जगह पहुंचा। यह उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश का बार्डर है। इससे आगे चलने के बाद मैं हिमाचल के पहाड़ों में जाने वाला हूं। मेरा लक्ष्य रेणुका देवी था। यही वह जगह थी जहां परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सिर फरसे से काट दिया था। लेकिन मैं वहां जा नहीं पाया। 

कालसी से डाकपत्थर जाने का रास्ता।

डाकपत्थर।


इसके आगे हिमाचल प्रदेश शुरू हो जाता है। अब अागे की यात्रा हिमाचल में चलेगी।
करीब 40 मिनट तक हिमाचल के गांवों में घूमता रहा। यहां कई जगह रास्ता भटका और लिफ्ट भी दी। 11 बजे रामवन के तिराहे पर पहुंच गया। अब यहां फैसला लेना था कि कहां जाना है। वहां चाय की दुकान पर बैठे कुछ लोगों से बात की तो समझ में आया कि रेणुका देवी होकर जाने में समय बहुुत लगने वाला था। मैं वैसे ही बहुत लेट हो चुका था और भोपाल भी पहुंचना था। इसलिए मैंने वहां न जाने का फैसला लिया और फिर पाउंटा साहिब गुरद्वारे के लिए रास्ता पकड़ लिया। 


हिमाचल प्रदेश में रामवन।

यहीं पर रेणुका देवी जाने का प्लान बदला।

अभी मैं कुछ दूर ही चला था कि बाइक पर कुछ लोग मुझे आवाज देने लगे। मैंने सोचा कि यहां तो मैं किसी को जानता नहीं, फिर कौन बुला रहा है। मैंने जब गाड़ी रोकी तो उस बाइक पर तीन लोग बैठे थे। चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लग रहा था। उन्होंने कहा कि रेणुका देवी का रास्ता ये नहीं बल्कि पीेछे छूट गया है। तब मुझे ध्यान कि इनसे मैंने रेणुका देवी के रास्ते का पता पूछा था। मैंने उन्हें बताया कि अब मैं वहां नहीं जा रहा हूं। 
पावंटा साहिब गुरुदंवारा।

11.40 बजे मैं पावंटा साहिब गुरद्वारे के अंदर था। यह वह जगह है जहां सिक्खों के दसवें गुरु गोविंदसिंह जी ने एक किले का निर्माण करवाया था। यहीं पर उनके शस्त्र भी रखे हुए हैं।उनके बड़े बेटे अजीत सिंह का जन्म भी यहीं हुआ था। यह जगह हिमाचल और उत्तराखंड का बॉर्डर है। बीच में यमुना नदी बहती है। यहीं पर कलगीधर पातशाह के 52 दरबारी कवि , कवि दरबार आयोजित करते थे। 











12 बजे यहां से 123 किमी दूर चंडीगढ़ के लिए निकला। आगे की यात्रा के बारे में जानकारी अगले लेख में...

इस बाइकिंग जर्नी से रिलेटेड आर्टिकल पढ़ने के लिए क्लिक करें...

-PART-10 शिवपुरी (उत्तराखंड) से देहरादून का सफर: जंगल कैंप और रिवर राफ्टिंग का रोमांचक अहसास, भगवान शिव ने पिया था यहीं विष का प्याला


-PART-3 चंदेरी से आगरा तक का सफर: इस किले में हजारों स्त्रियों ने किया था जौहर, गुजर्रा के सुनसान इलाके में मिला सम्राट अशोक का शिलालेख

-PART-2 चंदेरी के किले का देखा इतिहास: चंदेरी के किले को देखा रोचक इतिहास, एक मंदिर में मिले अनोखे शख्स

-PART-1 भोपाल से चंदेरी तक का सफर: शुरु किया बाइक से 3850 किमी का सफर, रास्ते में मिली कर्क रेखा

  


No comments:

Post a Comment