Thursday, October 6, 2016

जंगल कैंप और रिवर राफ्टिंग का रोमांचक अहसास, भगवान शिव ने पिया था यहीं विष का प्याला

               केदारनाथ ज्योर्तिलिंग की बाइक से 3850 किलोमीटर की अकेले रोमांचक यात्रा


                                PART-10 शिवपुरी (उत्तराखंड) से देहरादून का सफर

6 अक्टूबर, भोपाल।  भोपाल से 30 मई को यात्रा पर निकलने के बाद 30 की रात को ही 231 किमी की दूरी तय कर चंदेरी पहुंचा। उसके बाद दूसरे दिन 31 मई को 371 किमी की दूरी तय कर आगरा पहुंचा। 1 जून को आगरा से हस्तिनापुर 319 किमी की दूरी तय कर पहुंचा। 2 जून को 305 किमी की यात्रा कर हस्तिनापुर से रुद्रप्रयाग पहुंचा। 3 जून को रुद्रप्रयाग से चला और 77 किमी दूर गौरीकुंड पहुंचा। यहां से केदारनाथ मंदिर की 16 किमी की चढ़ाई शुरू की। 3 जून की शाम केदारनाथ धाम पहुंच गया। 4 जून को वापस केदारनाथ से चला। 16 किमी की पैदल यात्रा के बाद 198 किमी बाइक चलाकर उत्तराखंड के शिवपुरी में आया। यहीं नदी के बीचों-बीच कैंप में ठहरा। अब आगे..


शिवपुरी में रिवर राफ्टिंग
5 जून 2016, पक्षियों की चहचहाट की वजह से सुबह 5 बजे नींद खुल गई। रात में जितनी गर्मी लग रही थी, उतनी ही ठंडक अब महसूस हो रही थी। फ्रेश होकर आसपास पैदल ही घूमने के लिए निकल गया। पास में ही नदी बह रही थी, वहीं किनारे पर जाकर बैठ गया। पानी में पैर डालकर बैठे रहने से सुकून का अहसास हुआ। 7 दिन की यात्रा हो चुकी थी लेकिन थकान का कोई नामो-निशान नहीं था। 

जंगल कैंप।

जंगल कैंप के आसपास घूमने की तैयारी।


हट्स में सोते टूरिस्ट।

नदी किनारे लगा है कैंप।

ये धाराएं आगे जाकर गंगा नदी में मिलती हैं।

ठंडे पानी में पैर डालकर सारी थकान दूर की।

नदी किनारे घूमने के बाद कैंपिंग साइट पर वापस आया। नाश्ता करने के बाद सुबह 8 बजे हम वहां पहुंच गए जहां से हमें राफ्टिंग के लिए जाना था। 


इसी कैंप में रुकने की व्यवस्था थी।

यहां काफी सारे दोस्त बने लेकिन फिर आगे उनसे कभी बात नहीं हो पाई।

वापस जाने का रास्ता।

नदी के बीचों-बीच टेबल और कुर्सी लगाकर चल रहा जाम टकराने का दौर।

इस तरह जीप के ऊपर रखकर ले जानी होती है राफ्ट।



साढ़े 8 बजे हम उस जगह पहुंचे जहां से 16 किमी की राफ्टिंग होनी थी। सिर पर हेलमेट और हाथ में चप्पू दिया गया। कुछ दूर जंगल में निकलने के बाद गंगा नदी के किनारे पहुंचे।

यहीं से शुरू होनी है रिवर राफ्टिंग।









गंगा नदी के किनारे किया जा रहा राफ्ट आने का इंतजार


यहां पर 2 राफ्टों पर 8-8 के ग्रुप में हमें बिठाया गया। राफ्ट चलाने से पहले सभी को निर्देश दिए गए कि कब क्या करना है। सब कुछ समझने के बाद 9 बजे राफ्टिंग शुरू हुई। हम सब के मोबाइल और कैमरे एक ऐसे बैग में रख दिए गए जिसमें किसी भी स्थिति में पानी नहीं जा सकता था। 




कुछ दूर नदी में चलने के बाद रैपिड आना शुरू हो गए। इस ट्रेक में कुल 6 रैपिड मिलने थे। रैपिड का अर्थ होता है, जहां पानी को बहाव तेज हो जाता है और नीचे चट्टानें होती हैं। इनके 6 लेवल होते हैं, जो काफी खतरनाक होते हैं। एक रैपिड के बाद हमें पानी में उतरने की इजाजत मिल गई। एक रस्सी के सहारे हम बीच नदी में कूद गए और लाइफ जैकेट के सहारे तैरने लगे। फिर जैसे ही रैपिड आने को होता, हमें ऊपर खींच लिया जाता। 

15 मिनट की रिवर राफ्टिंग के बाद नदी में कूदने को कहा गया।

रोमांचक अहसास।




राफ्टिंग का अहसास शानदार रहा। डेढ़ घंटे पानी में राफ्टिंग के बाद हम किनारे पर पहुंचे। मोबाइल से हमने जो फोटो खींचे थे, वह हम सभी ने शेयर किए और फिर अपने-अपने रास्ते चल दिए। 

डेढ़ घंटे में 16 किमी की राफ्टिंग पूरी हुई।

नदी में पूरा हुआ खतरनाक सफर।


11 बजे शिवपुरी से रिषिकेश की चल दिया। साढ़े 11 बजे रिषिकेश पहुंच गया। अब यहां से फिर द्वंद शुरू हो गया कि आगे हरिद्वार चला जाए या फिर 12 किमी की चढ़ाई चढ़ नीलकंठ महादेव जाया जाए। मैं तीन बार हरिद्वार और रिषिकेश आ चुका था लेकिन नीलकंठ महादेव नहीं जा पाया था। अब मैंने तय किया कि वहां के दर्शन करके ही जाउंगा। 

शिवपुरी।

रिषिकेश।

रिषिकेश।

रिषिकेश से नीलकंठ महादेव का रास्ता।





करीब पौन घंटे बाद नीलकंठ महादेव पहुंचा। यहां का रास्ता भी पहाड़ी था और खतरनाक भी। मंदिर से थोड़ी दूर बाइक खड़ी कर पैदल ही चल दिया। मुख्य मंदिर में दर्शन के लिए जैसे ही मैंने लाइन देखी, फिर हौंसले पस्त हो गए। 2 घंटे से पहले नंबर नहीं आना था और मैं काफी लेट भी हो चुका था। फिर भी लाइन में लग ही गया।

नीलकंठ महादेव परिसर।

डेढ़ घंटे बाद नीलकंठ महादेव के दर्शन हुए। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद निकले विष को भगवान शंकर ने यहीं अपने गले में धारण किया था। 


नीलकंठ महादेव मंदिर, यहीं शिवजी ने विष का प्याला पिया था।


गढ़वालउत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

नीलकंठ महादेव।


नीलकंठ महादेव
ढाई बजे मंदिर से वापसी की यात्रा शुरू की। रास्ते में रुद्राक्ष के फलों की दुकान मिली। इन फलों के अंदर एकमुखी से लेकर 14 मुखी तक के रुद्राक्ष निकलते हैं। मैंने भी एक फल लिया जिसमें से 3 मुखी रुद्राक्ष निकला। हर फल की कीमत 50 रुपए थी। यानि 1 मुखी तक का रुद्राक्ष 50 रुपए में मिल सकता था, बस आपकी किस्मत सही होनी चाहिए। 

रुद्राक्ष के फलों से रुद्राक्ष निकालता दुकानदार।



3.30 बजे नीलकंठ महादेव मंदिर से रिषिकेश आ गया। यहां पर बहुत ही भीड़ नजर आ रही थी। बाइक भी निकालने में परेशानी लग रही थी। लक्ष्मण झूला और राम झूला देखते हुए किसी तरह इस भीड़ से बाहर निकल कर हरिद्वार के लिए निकला। यहां से मुझे गंगा का पानी भरकर लेना था। लेकिन फिर सोचा कि हरिद्वार में हर की पौड़ी से भर लूंगा लेकिन ये हो नहीं पाया। 


रिषिकेश।

लक्ष्मण झूला, रिषिकेश।







5 बजे मैं हरिद्वार शहर के अंदर आ गया लेकिन गंगा नदी तक नहीं पहुंच पाया। वहां करीब 10 किमी लंबा जाम लगा हुआ था। जब लगा कि हर की पौड़ी तक 2 घंटे में भी नहीं पहुंच पाउंगा तो फिर वहां जाने का इरादा बदल दिया। अब हरिद्वार में न रुककर देहरादून के लिए निकल दिया। 

राजाजी नेशनल पार्क।

हरिद्वार।

हरिद्वार।

हरिद्वार में जाम में फंसा तो फिर देहरादून के लिए रुख किया।

रास्ते में आंधी-तूफान आ गया लेकिन बारिश नहीं मिली। जब देहरादून पहुंचने को था तो पता लगा कि यहां बारिश और आंधी-तूफान के काफी नुकसान पहुंचाया है। सड़क पर पेड़ टूटकर गिरने से फिर जाम मिला। किसी तरह 50 किमी की दूरी 2 घंटे में पूरी कर देहरादून पहुंचा। 

देहरादून।

देहरादून।

देहरादून में दोस्त के भाई का घर, यहीं पर आज रात का ठिकाना बना था।

यहां पर भास्कर डिजीटल में काम करने वाले साथी ओमप्रताप सिंह के भाई तेजप्रताप अपने परिवार के साथ रहते थे। उनसे बात हो गई तो वह मुझे लेने आ गए। उनके साथ घर पहुंचा। वहीं खाना भी हुआ। इनका यहां ट्रैवल्स का काम था। इनकी एक बात मुझे अभी तक याद और आगे भी रहेगी। जब वह 7 बजे मुझसे मिलने आए तो उनके कान पर ही मोबाइल लगा हुआ था और जब रात को 12 बजे सोने की तैयारी थी, तब भी उनके कान पर ही मोबाइल था। उनका सारा बिजनेस मोबाइल से ही चल रहा था। सुबह उठा तो फिर मोबाइल चालू। इस तरह 5 जून को सिर्फ 123 किमी की ही जर्नी हो पाई। 


आगे की लेख में पढ़ें, सम्राट अशोक के कालसी में लघु शिलालेख, हिमाचल में पांउटा साहिब गुरुदुवारा, चंडीगढ़ और कुरुक्षेत्र के सफर के बारे में...

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